देशी रियासतों का एकीकरण
भारतीय राज्यों के ऊपर ब्रिटिश सर्वोच्चता, भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम -1947 द्वारा 15 अगस्त, 1947 को खत्म होनी थी। माउन्टबेटन योजना के तहत राज्यों को यह छूट दी गयी कि वे या तो भारत या पाकिस्तान में शामिल हों अथवा अपनी स्वतंत्र सत्ता बनये रखें। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने; जिन्होंने जुलाई 1947 में राज्यों के विभागों का उत्तरदायित्व ग्रहण किया, अत्यतं कुशलता के साथ इस समस्या का समाधान किया, इसलिए उन्हें भारत का बिस्मार्क भी कहा जाता है। इस कार्य में उनकी सहायता वीपी। मेनन ने की। सभी 652 राज्यों के शासकों ने 15 अगस्त, 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये। अपवाद थे जूनागढ़, कश्मीर और हैदाराबाद। जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान में मिलने की घोषणा की, जबकि राज्य की जनता ने भारत में मिलने की इच्छा व्यक्ति की। अंततः भारतीय सेना ने राज्य पर अधिकार कर लिया। हैदराबाद के निजाम ने अपने को स्वतंत्र रखने का प्रयास किया, परन्तु इसके कई क्षेत्रों तेलांगाना आदि में विद्रोह के कारण बलपूर्वक इसका अधिग्रहण किया गया। कश्मीर के महाराजा ने भी भारत में मिलने में अत्यधिक विलम्ब किया। यहां तक कि सबसे शत्तिशाली राजनीतिक दल नेशनल कांफ्रेंस भारत में मिलना चाहता था। अंततः पठानों और पाकिस्तानी हमले के पश्चात् महाराजा ने इसका विलय भारत में कर दिया।
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